हम लेके आये है Allama Iqbal Shayari आपके लिए स्पेशल पढ़िए Allama Iqbal Shayari in Hindi और शेयर करें फीलिंग्स इन शायरी के साथ सोशल मीडिया पर
बहुत ही प्रसिद शायर Dr Allama Iqbal का जन्म पंजाब, पाकिस्तान में 9 नवंबर 1877 को हुआ था और देहांत 21 अप्रैल 1938 में हुआ था उर्दू और फ़ारसी में इनकी बहुत सी शायरी है जिनको आधुनिक काल की सर्वश्रेष्ठ शायरी में गिना जाता है मुझे पता है.
आप Dr Allama Iqbal Shayari की तलाश में यहाँ तक आये है ये कलेक्शन Allama Iqbal Shayari Hindi का ही है आज हम लेके आये है Best Allama Iqbal Shayari जो को बहुत Famous है आप इन Allama Iqbal Ki Shayari को पढ़ सकते है और सोशल मीडिया पर शेयर भी कर सकते है.
Best Allama Iqbal Shayari in Hindi

ख़ुदी को कर बुलंद इतना के हर तक़दीर से पहले,
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है..!!
तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ,
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी बड़ा बे अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ..!!
दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब,
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो..!!
तेरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया,
यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी..!!
मुझे इश्क के पर लगा कर उड़ा,
मेरी खाक जुगनू बना के उड़ा..!!
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं,
तू मेरा शौक़ देख मेरा इंतज़ार देख..!!
आँख जो कुछ देखती है लब पे आ सकता नहीं,
महव-ए-हैरत हूँ कि दुनिया क्या से क्या हो जाएगी..!!
अंदाज़-ए-बयाँ गरचे बहुत शोख़ नहीं है,
शायद कि उतर जाए तिरे दिल में मिरी बात..!!
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ,
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ,
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को,
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ..!!
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को,
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ..!!

किसी की याद ने जख्मों से भर दिया है सीना,
अब हर एक सांस पर शक है के आखरी होगी..!!
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं,
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं,
तही ज़िंदगी से नहीं ये फ़ज़ाएँ,
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं..!!
बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम,
सौ बार कर चुका है तू इम्तिहाँ हमारा..!!
मैं रो रो के कहने लगा दर्द-ए-दिल,
वो मुंह फेर कर मुस्कुराने लगे..!!
कौन रखेगा याद हमें इस दौर ए खुदगर्जी में,
हालत ऐसी है की लोगों को खुदा याद नहीं..!!
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है,
मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी..!!
इश्क कातिल से भी मकबूल से हमदर्दी भी,
यह बता किससे मोहब्बत की जजा मांगेगा..!!
अनोखी वजह है सारे ज़माने से निराले हैं,
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं..!!
तू ने ये क्या ग़ज़ब किया मुझ को भी फ़ाश कर दिया,
मैं ही तो एक राज़ था सीना ए काएनात में..!!
तेरा इमाम बे-हुज़ूर तेरी नमाज़ बे-सुरूर,
ऐसी नमाज़ से गुज़र ऐसे इमाम से गुज़र..!!

साकी की मुहब्बत में दिल साफ हुआ इतना,
जब सर को झुकाता हूं शीशा नजर आता है..!!
मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा क्या ग़र्क़ होने से,
कि जिन को डूबना है डूब जाते हैं सफ़ीनों में..!!
हर शय मुसाफ़िर हर चीज़ राही,
क्या चाँद तारे क्या मुर्ग़ ओ माही..!!
मिरी निगाह में वो रिंद ही नहीं साक़ी,
जो होशियारी ओ मस्ती में इम्तियाज़ करे..!!
सजदा खालिक़ को भी इबलीस से याराना भी,
हश्र में किस से मोहब्बत का सिला माँगे गा..!!
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा..!!
बात सजदों की नहीं ख़ुलूस ए दिल की होती है इक़बाल,
हर मैख़ाने में शराबी और हर मस्जिद में नमाज़ी नहीं होता..!!
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का,
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है..!!
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा,
हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसितां हमारा..!!
जो मैं सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा,
तिरा दिल तो है सनम-आश्ना तुझे क्या मिलेगा नमाज़ मे..!!

और भी कर देता है दर्द में इज़ाफ़ा,
तेरे होते हुए गैरों का दिलासा देना..!!
बे-ख़तर कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़,
अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी..!!
सुबह को बाग़ में शबनम पड़ती है फ़क़त इसलिए,
के पत्ता पत्ता करे तेरा ज़िक्र बा वजू हो कर..!!
हमने तन्हाई को अपना बना रक्खा,
राख के ढ़ेर ने शोलो को दबा रक्खा है..!!
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है,
पर नहीं ताक़त -ए -परवाज़ मगर रखती है..!!
मेरे बचपन के दिन भी क्या ख़ूब थे इक़बाल,
बेनमाज़ी भी था और बेगुनाह भी..!!
दिल से जो बात निकलती है अस़र रखती है,
पर नहीं ताक़ते परवाज़ मगर रखती है..!!
जफ़ा जो इश्क़ में होती है वो जफ़ा ही नहीं
सितम न हो तो मोहब्बत में कुछ मज़ा ही नहीं..!!
नशा पिला कर गिराना तो सब को आता है,
मज़ा तो जब है के गिरतों को थाम ले साक़ी..!!
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले,
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है..!!

कौन ये कहता है, ख़ुदा नज़र नहीं आता,
वही तो नज़र आता है जब कुछ नज़र नहीं आता..!!
मस्जिद तो बना दी शब भर में ईमाँ की हरारत वालों ने,
मन अपना पुराना पापी है बरसों में नमाज़ी बन न सका..!!
मिटा दे अपनी हस्ती को गर कुछ मर्तबा चाहिए,
कि दाना खाक में मिलकर गुले-गुलजार होता है..!!
सजदों के इवज़ फ़िरदौस मिले ये बात मुझे मंज़ूर नहीं,
बे लौस़ इबादत करता हूँ बंदा हूँ तेरा मज़दूर नहीं..!!
तेरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया,
यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी..!!
यूँ तो ख़ुदा से माँगने जन्नत गया था मैं,
करबो बला को देख कर निय्यत बदल गयी..!!
दिल में ख़ुदा का होना लाज़िम है इक़बाल,
सजदों में पड़े रहने से जन्नत नहीं मिलती..!!
दिल पाक नहीं तो पाक हो सकता नहीं इंसाँ,
वरना इबलीस को भी आते थे वुज़ू के फ़रायज़ बहुत..!!
दिलों की इमारतों में कहीं बंदगी नहीं,
पत्थर की मस्जिदों में ख़ुदा ढूँढते हैं लोग..!!
Final Words
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